लोककथा : सराद क बिराउ :
साल भरिक बाद बुडि़याक सरादक दिन ऐ। व्वारि उठि बेर रतिव्याण
रतिव्याण तलि बाखलि वालनां का या पुजि। ‘‘हं हो, आज तुमन थैं
एक चीज मांगण हुॅं ऐरयूं, मणि देराका लिजिया आपण बिराउ हमन कैं
दि दियौ त।’’ व्वारि बुलाणि।
तलि बाखलि कि देबुवै कि इजै लै पुछः ‘‘हाइ, आज रतिव्यांण बिराउ कि
चैन पडि़रौ।’’ ‘‘कि करु हौ’’, व्वारिल कया, ‘‘बेलि व्याल क्याप टपि
जौ पड़ी। आज सासुक सराद छु। जब तक उ छिन सौरज्यूका सरादाका दिन
रत्तैई बिराउ कैं छापरिक मुणि छोपि दिंछिन,तब और सरम जाम करछिंन।
उसै मैं लै करनिं। घर में आब बिराउ त छु नैं। मैंल कै तुमार वां बटिक
सरादक बिराउ मांगि ल्यंू। छापरि घर में छनै छु उकैं छोपणाका लिजिया।’’