06 – व्रत परक कथाएं : कुमाऊं की सामाजिक मान्यताओं तथा धार्मिक अनुष्ठानों
से संबंधित व्रत संबंधी अनेक कथाएं वहां के महिला समाज में अधिक प्रचलित हैं।
जन गण मन की आस्था से अनुप्राणित इन कथाओं में अलग-अलग, देवी-देवताओं
के माहात्म्य का विशेष वर्णन होता है। जब जो त्योहार या व्रत होता है, तब उससे
संबंधित कथाएं कही सुनी जाती हैं। उदाहरण –
लोककथा : सराद क बिराउ :
मूल कथा : एक छि सासु और एक छि वीकी व्वारि। सासु लै एक बिराउ पाली भै।
जब सासु चुल पन खाण पकूंण हुं बैठी त बिराउ लै गुर्र गुर्र करनैं आपणि गुस्याणिक
दगाड़ा चुलाका अघिन बै भै रुनेर भै। बिराउ किं आदत भै, कबखतै क्वे भान में मूख
हालो त कबखतै कै मैं।
आपण सरास अइया का साल बटिक व्वारिलै देखी भै कि जै दिन वीक ससुरज्यूं क सराद
हुनेर भयो त सासु रत्तैई बै बिराउ कै एक छापराका मुणि बै छोपि दिनेर भै। जब तक
बामण ऐ बेर सराद निं करवा। तब तक उ बिराउ उसिकै छापराका मुणि बै छोजी राखीनेर
भै। हर सालै सरादाका दिन सासु रत्तैई छापारै कि ढून करि हालनेर भै बिराउ कै छापण हुंणि।
कतुक साल न्है गे ऐसिके। व्वारि स्याणि है गे आपण कारबार टिपण लै कै कि और सासु लै
फुलि बेर हुमण्म है गे। बुडि़याका उथकै कै दन भै, एक बखत उ बिमार पडि़ और जानीं रै।
वी साल बिराउ लै मरि गै।