लोकगाथा : मालूसाही :
हिन्दी रूपान्तर – 2 (क्रमशः)
तब सुनपति कहने लगा, आंसू गिराते हुए –
औलाद नहीं है हमारी, मैने सुना है,
ए चित्रशिला देवियों में, देवी प्रसिद्ध होगी।
जो जिस कामना से जाता है, उसका दुख दूर होता है,
तू जाकर आ गांगुली ! देवी के मंदिर।
अब गांगुली देवी ने, कपड़े पहन लिए।
अब दोनों आंखों से आंसू गिरा लिए।
अनुकूल होना, देवी ! मेरे पुत्र नहीं है,
स्त्री होने का मेरा धर्म देवी ! तू झूठा मत करना।
कहते कहते नीचे आ गई गांगुली सौक्यानी,
आते आते आ गई गांगुली गोरी गंगा के तीर,
आ, चली गई गांगुली घुटनों तक पानी में,
आप ही चली गई गांगुली कमर कमर तक पानी में,
तब गांगुली तेरे कपड़े भीग जाएंगे,
तब गांगुली तूने गंगा पार कर ली है।
अब चल पड़ी है वह गांगुली बिजुली दानपूरा,
स्वयं ही चली गई गांगुली बिजुली दानपूरा,
खुद ही पहुंच गई बैराग बिजुली दानपूरा,
बिजुली दानपूरा में निंगाले फूले हुए थे, – क्रमशः