ग़ज़ल : तुमको :
जमाने की हवा में चाहत.ए.परवाज हो तुमको
तो ऐसा काम कर जाओ कि जिस पर नाज हो तुमको
समन्दर तो समन्दर है उसे क्या ख़ाक नापोगे
मुनासिब है कि अपनी प्यास का अन्दाज हो तुमको
जिसे तहजीब कहते हो वो कुदरत की खिलाफ़त है
ये कल महसूस होना है तो क्यों ना आज हो तुमको
ये नक्शा मत बिगाड़ाे पेड़.पौधों की बहारों का
कहीं ऐसा न हो कल ज़िंदगी नाराज हो तुमको