लोकगाथा : मालूसाही : हिन्दी रूपान्तर – 1
आ ……. सुन लीजिए भाई बंधुओ !
हृदय से जागृत रहिएगा।
अनुकूल हो जाइए, हे महादेव !
अनुकूल हो जाइए, हे गौरा पारवती !
काम सफल कीजिए सिद्धि के गणेश !
उस समय के पंचनामा देव रहते पंचचूली में,
पंचा देव नाम, अनुकूल हो जाइए भगवान !
अट्ठासी सौ गंगा भुलू! नवासी सौ तीरथ,
अनुकूल हो जाइए इस भूमि के भुम्याल !
है .. स्ंसार में सबसे बड़ा दुख, पुत्र का शोक
पाली पछाउं धरमा रानी, तेरा पुत्र नहीं था,
सेड़ी सौक्यानी गांगुली सौक्यानी,
भुलू ! तेरा पुत्र नहीं था,
तेरा पति था सुनपति सौका,
जिस सौक का सोने का अटांगण था सोने का पटांगण,
नौ लाख बकरी हैं, घोड़े हैं, भेड़ हैं,
बकरी तिलू रे हेलू लाखा,
गांगुली सौक्यानी बैठ गई सुनपति तेरे समक्ष,
क्या करता है ब्यौपार से सुनपति!
क्या करता है अन्न से, क्या करता है धन से
कौन इसका भोग करेगा, संतान ही नहीं है – (क्रमशः)