विशेष : उदाहरण :
अठारहवीं शताब्दी में वररुचि लिखित ‘पत्र कौमुदी’ के पत्रों की भाषा को आचार्य
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदुस्तानी की संज्ञा प्रदान की है। राम प्रसाद निरंजनी द्वारा
लिखित ‘भाषा योग वशिष्ट’ की भाषा के विषय में आचार्य शुक्ल ने लिखा है कि –
लोगों को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि खड़ीबोली गद्य का विकास अंग्रेजों की प्रेरणा
से हुआ था, बल्कि खड़ीबोली गद्य का विकास तो उससे पहले से ही हो गया था।
निरंजनी की भाषा का एक नमूना आप स्वयं देख सकते हैं – ‘ हे भगवन आप सब
तत्वों और सब शास्त्रों के जाननहारे हौ, मेरे एक संदेह को दूर करौ। मोक्ष का कारण
कर्म है कि ज्ञान है अथवा दोनों है, समझाय के कहो।’
यही पुस्तक वस्तुतः खड़ीबोली गद्य की प्रारंभिक पुस्तक मानी जाती है। इसके उपरान्त
दौलतराम लिखित ‘पद्मपुराण’ की चर्चा होती है। ‘पद्मपुराण’ की भाषा का एक उदाहरण
इस प्रकार है – ‘जंबूद्वीप के भारत क्षेत्र विषै मगध नामा देश अति सुंदर है जहां पुण्याधिकारी
बसे हैं, इंद्रलोक समान सदा भोगोपभोग करे हैं और भूमि विषै सांठेन के बाड़े शोभायमान हैं।’