लोकगाथा : 01 – पारंपरिक :
जिस तरह अलग-अलग स्थानों पर बोली का स्वरूप बदला हुआ मिलता है,
उसी तरह जगह-जगह पर लोकसाहित्य की धुनों में भी परिवर्तन परिलक्षित
होता है। प्रसिद्ध लोकगाथा मालूसाही बारामंडल की ओर जिस धुन में गाई
जाती है, वह राग दुर्गा के निकट है। कौसानी बागे’वर की ओर प्रचलित
इसके रूपांतरों में राग सोहनी की वि’ोषताएं लक्षित होती हैं।
कुमाऊं में प्रचलित छोटी बड़ी लगभग एक सौ लोक गाथाएं अपने प्रमुख पात्रों
के माध्यम से स्थानीय जनजीवन की सांगोपांग अभिव्यक्ति करती हैं। इनके
कथानायक जन्मजात वीर और साहसी होते हैं, जो विषम परिस्थितियों का
सामना करते हुए आत्म-वलिदान कर देते हैं। फिर किसी जादुई कृत्य से वे पुनः
जीवित हो उठते हैं। विषयवस्तु के आधार पर कुमाऊं में प्रचलित लोकगाथाओं
को विभाजित करने के लिए चार वर्ग बनाए जा सकते हैं।
लोकगायकों की खानदानी परंपरा में पीढ़ी दर पीढ़ी विस्तार प्राप्त करने वाली
गाथाएं परंपरागत लोक गाथाएं कहलाती हैं। कुमाऊं की सभ्यता और संस्कृति
के अतीत पर प्रकाश डालने वाली ये गाथाएं अत्यंत रुचिपूर्वक गाई और सुनी
जाती हैं। इनमें मालूसाही और रमौल विशेष रूप से लोकप्रिय हैं।