लोकगाथा : लोक गाथा :
लोकसाहित्य अनेक पीढि़यों तक समाज के जीवन पर अपना प्रभाव बनाए
रखता है। एक ओर यदि उसकी मुक्तक रचनाओं में अभिव्यक्त मनोदशाएं
मन को आकर्षित करती हैं, तो दूसरी ओर प्रबंध रचनाओं के चरित्रों की
विशेषताएं बुद्धि को सम्मोहित करती है। संभवतः इसीलिए मन की भावनाओं
से ओतप्रोत लोकगीतों की पंक्तियां बार बार गाई जाती हैं एवं बुद्धि के कौशल
से भरपूर लोकगाथाएं बार बार दोहराई जाती हैं।
कुमाऊं में लोक साहित्य का अनंत भण्डार भरा पड़ा हुआ है, पर लिखित रूप
में नहीं बल्कि लोकगायकों तथा रसिकों की कण्ठ परंपरा में। यदि यह कहें कि
सारा कुमाऊं का प्रदेश लोकसाहित्य से कूट कूट कर भरा है, तो इसमें कोई
अत्युक्ति नहीं। यह साहित्य मुख्य रूप से प्रबंध तथा मुक्तक दो रूपों में सुलभ है।
प्रबंध काव्य के रूप में प्रधानतः लोकगाथाएं ही आती हैं।
कुमाऊं के सुरम्य अंचलों में विविध प्रकार की लोकगाथाओं की अगाध निधि
उपलब्ध होती है। श्रुति परंपरा से अर्जित होने के कारण अलग अलग क्षेत्रों में
किसी किसी गाथा के एकाधिक रूप भी मिलते हैं। इन लोकगाथाओं की शैली
गद्य-पद्य मिश्रित है। गाथाओं के विस्तार में अनेक स्थल ऐसे भी आते हैं, जहां
पद्य का स्थान गद्य ले लेता है, पर गायक उस अंश को भी लय के साथ ही
गाता है।