ग़ज़ल : गए :
जब भी जज़्बात की ऊंचाइयों के पार गए
गर्दिश-ए-वक्त के एहसास हमें मार गए
हमको उम्मीद थी हम आसमाँ को जीतेंगे
अपनी किस्मत के सितारों से मगर हार गए
चन्द सिक्कों के लिए पेड़ का सौदा न करो
उनको समझाने गए पर लगा बेकार गए
कुदरती हुस्न की तारीफ सभी करते हैं
वह कहीं जाता नहीं सब वहाँ सौ बार गए