लोककथा : शक्तिमान :
मूल कथा :
एक भै मुस। वीकी एकलि चेलि भै, जैक ब्या करण छी। वील कै – ‘चेलिक ब्या
संसार में सबन है ठुल मैंस दगड़ करुंल।’ …ऊ सुरजक पास गै और बुलाण –
‘स्वामी ! तुमन दगड़ आपणि चेलि बेऊण चानूं।’ सुरजैल क्वे ‘भाई ! मैं ब्या करि
ल्यूंल, मगर ऊ म्यर ताप कसिक सकैलि ? म्यर क्वे घर बार न्हैं। रात दिन एक
जागा बै दुहरा जागा जानैं रूं।’ मुसैल क्वे – ‘तुमूं दगड़ चेलि कैं के तकलीफ नि हो।
तुम शक्तिमान छा।’ सुरुज बुलाण – ‘नै भाई ! मैं शक्तिमान न्हातूं। मीं त रात दिन
जलनै रूं। तू चंद्रमा पास जा।’
मुस चंद्रमा नजीक जैबेर बुलाण – ‘स्वामी ! तुमन दगड़ आपणि चेलि बेऊण चानूं।’
चंद्रमाल वीकि खातिरदारी करिबेर क्वे – ‘मकैं त कलंक लागि रौछ रे ! तुम देखन छा
मैं रातै में भैर जानूं। मैं त्यार चेलि लिजि घन दौलत कां बटि ल्यूंल ?’ मुस बुलाण –
‘ क्वे बात न्है। मेरि चेलि तुमन दगाड़ भलि कै रौली। तुम शक्तिमान छा।’ चंद्रमाल कै –
‘ नै भाया ! मैं है बेर बादव शक्तिमान छ। तू वां जा।’ (क्रमशः)