गीत : किसलिए :
कौन सी रीत है
किसलिए फर्ज से
भागती जा रही जि़ंदगी
आइने में निरखती है किसकी शकल
खुद को पहचानती ही नहीं है अगर
छोड़ अपनी अकल दूसरों की नकल
मंदिरों तक कतारों की लंबी डगर
कौन सी चीज है
किसलिए हर जगह
मांगती जा रही जि़ंदगी
सिर्फ सपनों पे
उम्मीद का बोझ क्यों
टांगती जा रही जि़ंदगी