लोककथा : दिन दिदी जाग जाग :
हिंदी अनुवाद :
अब बहू ने वन से सात गट्ठर घास काट लाने थे। बिना दराती और रस्सी के ही
वन कीओर जाते-जाते उसने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की ः ”हे प्रभु यदि
आप न्यायी हैंतो मेरी यह विपत्ति टालना। दोपहरी की धूप अब ढलने लगी थी।
बहू आगे चलते-चलते आकाश में सूर्य को देखती जाती और कहती जाती। –
”ओ दिन दीदी, रुक जाओ, रुक जाओ ओ दिन दीदी।“
वन में पहुँचने पर उसने देखा कि जंगल के सब चूहे एकत्र होकर घास काटने में
लगे हैं,अब चूहे सात गट्ठर घास काट चुके तो साँपों ने आकर गट्ठर बाँध दिये।
अब बहू ने सातगट्ठर घास घर को लानी आरम्भ की। एक के बाद दूसरा गट्ठर
पहुँचाती जाती और ”दिन दीदी, रुक जाओ, रुक जाओ“ कहती जाती।
जब सब काम पूरा हो गया तो बहू प्रसन्न मन से मायके की ओर चली। दिन
रहते हीमायके पहुँचने की धुन लगी थी उसे। रास्ते भर ‘दिन दीदी, रुक जाओ
रुक जाओ’कहती-कहती जब वह अपने मायके के समीप पहुँची तो सूर्य भगवान
पहाड़ की चोटी पररुके थे। बेचारी के दुःख को देख वे इतनी देर तक रुके रह गए
कि वह दिन बहुत बड़ा हो गया।
मायके के दरवाजे पर पहुँच वह बेचारी इतनी खुश हो गई कि दिन को विदा करने
की यादतक न रही उसे। जब दिन रुका ही रह गया और उसे विदा न किया गया तो
सूर्य ने क्रोधितहो लड़की को शाप दे दिया और मायके के दरवाजे पर ही उस लड़की
ने दम तोड़ दिया।