सिनेमा : एहसास :
साहिर लुधियानवी की कलम का सरल जीवन दर्शन बी आर चोपड़ा की अनेक
फिल्मों में अत्यंत सहज भाव से मुखरित हुआ है। ‘द बर्निंग ट्रेन’ के कंपार्टमेण्ट
में अभिनीत इस कव्वालीनुमा गाने के मुखड़े और अंतरे के बीच के अरेंजमेण्ट में
आर डी बर्मन ने भी ट्रेन की स्पीड की अनुभूति कराने वाली ध्वनियों का प्रभावशाली
मिश्रण किया है।
पल दो पल का साथ हमारा,
पल दो पल के याराने हैं
इस मंजिल पर मिलने वाले,
उस मंजिल पर खो जाने हैं
फिल्म ‘बंटी और बबली’ में ट्रेन की शाश्वत लय ताल के साथ मुखरित गुलजार
साहब के बोल ‘धड़क धड़क’ ट्रेन में बैठे होने का सा ही एहसास कराते हैं। इस
एहसास में जवान दिलों की जल्दी से जल्दी अपनी मंजिल को पाने की ललक भी
झलकती है। इस ललक को शंकर एहसान लाॅय ने गीत की धुन में बड़ी खूबसूरती
के साथ उभारा है। हम चले हम चले ओए रामचंद्र रे ……
धड़क धड़क, धड़क धड़क
धुआं उड़ाए रे
धड़क धड़क, धड़क धड़क
सीटी बजाए रे