लोककथा : दिन दिदी जाग जाग :
हिंदी अनुवाद :
सास के अधीन रहने वाली बहू कुछ कह भी न सकती थी। चुपचाप गोबर निकालने
चली। गोबर इकट्ठा कर अंजुली भर कर बाहर फेंकती जाती और फूट-फूट कर रोती
जाती। सात गोठों से गोबर निकालते निकालते दोपहरी हो आई। बेचारी घर के भीतर
से सात सूप धान निकाल कर ऊखल के पास आई पर कूटती कैसे?
मूसल तो सास ने छिपा लिया था। खड़ी खड़ी ढ़ल ढ़ल आँसू ढुलकाने लगी। कहते हैं
दोपायों (मनुष्यों) में कृतज्ञता हो या न हो चैपायों में कृतज्ञता-भाव होता है। दीवार
पर चिडि़यों का एक झुण्ड बैठा था। उन्होंने बहू को रोते देखा। सब चिडि़या उड़ कर
आँगन में आ गई और अपनी चोंचों से धानों से चावल निकाल निकाल कर अलग
कर दिये। अब चिडि़यों ने सब धान तोड़ कर चावल अलग कर लिये। तो
बहू चावल लेकर भीतर गई। वहाँ सास पहले से नाली (स्थानीय माप का एक बर्तन)
लिए चावल मापने बैठी थी कि बहू कहीं धान छिपा तो न आई, चावल चबा तो नहीं
लिए। मापते समय जब चावल का एक दाना कम निकला तो सास बहू पर चोरी का
आरोप लगा उसे मारने को उद्यत हुई और कहने लगी कि जो चावल का दाना तू
छिपाए हुए है उसे निकाल ला।
बहू फिर रोती-रोती चिडि़यों के पास गई उन्हें बताने कि उस पर चावल के एक दाने
की चोरी का आरोप लगाया जा रहा है। धान तोड़ते समय एक चिडि़या की चोंच में
धान का एक दाना अटक गया था। चिडि़या ने वह दाना निकाल कर वापस कर दिया
और उसे लेकर बहू सास को एक दाना चावल वापस करने चली। (क्रमशः)