सिनेमा : संयोजन :
इंजन की सीटी की आवाज के साथ उससे मिलती जुलती बांसुरी की धुन
से शुरू होने वाले फिल्म ‘अजनबी’ के आनंद बख्शी के गीत के संगीत
संयोजन में भी आर डी बर्मन ने ट्रेन की रफ्तार से मिलता जुलता अच्छा
ट्रेक बनाया था। नायक और नायिका के गायन के बीच में कोई पूछता भी
है कि – ए बाबू ! कहां जइबो रे !
हम दोनों दो प्रेमी दुनिया छोड़ चले
जीवन की हम सारी रस्में तोड़ चले
बाबुल की आए मोहे याद
जाने क्या हो अब इसके बाद
आर डी बर्मन और आनंद बख्शी की एक और फिल्म ‘आपकी कसम’ में
राजेश खन्ना ट्रेन में खिड़की के पास बैठकर पीछे छूटती हुई पटरियो,
प्लेटफाॅर्म, खेत, मंदिर वगैरह के संदर्भ में एक दार्शनिक की सी मुद्रा में
गाते हैं कि – जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम वो फिर नहीं
आते। फूल खिलते हैं, लोग मिलते हैं; मगर पतझड़ में जो फूल मुरझा
जाते हैं, वो बहारों के आने से खिलते नहीं …
कुछ लोग इक रोज जो बिछड़ जाते हैं
वो हजारों के आने से मिलते नहीं
उम्र भर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम
वो फिर नहीं आते