लोककथा : दिन दिदी जाग जाग :
हिंदी अनुवाद –
एक सास थी बहुत ही बुरे स्वभाव की। उसकी एक छोटी सी बहू थी। अपनी बहू
के प्रति सास का व्यवहार बहुत बुरा था। उत्सव-पर्वों पर भी सास बहू को उसके
मायके न भेजती। अपने माँ-बाप, भाइयों की याद में बेचारी तड़पती, पर सास के
सामने कहे भी क्या। जब भी बहू अपने गाँव की और बहुओं को सज-संवर कर
अपने-अपने मायके जाते देखती तो स्वयं भी रुआंसी हो उठती।
एक दिन प्रातः बहू ने डरते-डरते अपनी सास से कहा ”सास जी, दो-चार दिन के
लिए ही मुझे मेरे मायके भेज देतीं आप, तो। इधर बड़े भाई भी छुट्टियों में घर आए
होंगे। मैं उनसे भेंट कर चौथे-पाँचवें दिन लौट आऊँगी।“ बहू का इतना कहना था कि
सास चिड़चिड़ा उठी ”हाँ तेरा मन यहाँ क्यों लगेगा, यहाँ तो तो तुझे काट खाने आते
हैं न। निराला ही है तेरा मायका। तू मायके चली जा, वहाँ का काम निबटाना है ना,
और मैं यहाँ घास-लकड़ी लाती फिरूँ।“
बहू ने कहा – ”नहीं जी, मैं घास-लकड़ी लाने का सब काम करने के बाद जाती। दो
दिन के लिए भी आप भेज देती तो। सिर्फ चार ही दिन के लिए। सास बहू को चार
दिन के लिए मायके भेज देने को राजी तो हो गई पर अपना टेढ़ापन न छोड़ा उसने।
बहू से बोली – ‘‘तू आज ही सांझ चली जाना, पर जाने से पहले गायों के सात गोठों
से गोबर निकाल जा, टोकरी तो है नहीं, यह सात सूप धान कूटने है, मूल तो टूटा
हुआ है। तू इन धानों को कूट जाना और सात गट्ठे घास के काट जाना।’’ सास ने
दराती और रस्सी पहले ही छिपा दी। (क्रमशः)