विशेष : द्वितीय चरण (1500-1800 ई0):
मध्यकालीन हिंदी अपने समय की तीन बोलियों
में अग्रसर हुई। अपभ्रंश के प्रभाव से मुक्त एवं
आत्मनिर्भर ब्रज तथा अवधी का साहित्य में
और खड़ीबोली का आम बोलचाल में सदुपयोग
हुआ।
हिंदी भाषा के द्वितीय चरण में हिंदी साहित्य का
भक्तिकाल एवं रीतिकाल समाहित हैं। भक्तिकाल को
हिंदी साहित्य के इतिहास का स्वर्णयुग माना जाता
है, क्योंकि इस काल में विभिन्न भक्तिधाराओं के
विविध भक्तकवियों ने अपनी भक्तिरचनाओं के द्वारा
जनमानस में भक्तिभावना का संचार किया।