भाषा : रूपान्तर :
लिंग की दृष्टि से मूल सर्वनामों में कोई भेद नहीं होता। अतः लिंग सर्वनामों
की रूप रचना पर नहीं, वरन् क्रियाओं की रूप रचना पर अधिक प्रभाव डालते
हैं, नतीजतन वाक्य के क्रियारूप ही सर्वनामों का लिंग द्योतन करते हैं। जैसेः
सर्वनाम : क्रिया रूप : लिंग
उ : जान्नौ : पुलिंग
उ : जान्नै : स्त्राीलिंग
वचन की दृष्टि से सर्वनाम जिस संज्ञा रूप का प्रतिनिधित्व करता है, उसी के
अनुसार वचन धारण कर लेता है, जिसका प्रभाव वाक्य के अन्य रूपों पर भी
पड़ता है।
पुरुष वाचक तथा निश्चयवाचक सर्वनामों में दोनों वचनों के पृथक-पृथक रूप हैं,
पर शेष सर्वनामों के एकवचन रूप ही बहुवचन में ही प्रयुक्त होते हैं। ऐसी स्थितियों
में भी क्रिया रूप ही वचन द्योतन का कार्य करते हैं। कारक की दृष्टि से संज्ञा की
ही भांति सर्वनाम के भी अपरसर्गी तथा सपरसर्गी रूपों का प्रयोग उपलब्ध होता है,
पर उनके सम्बोधन रूप नहीं होते।