गीत : जि़ंदगी :
सिर्फ सपने पे
उम्मीद का बोझ क्यों
टांगती जा रही जि़ंदगी
जा रही है कहां भीड़ ये बावली
रात सोती नहीं सुबह जगती नहीं
कौन सी आरजू हो गई मनचली
क्यों कभी वक्त पे आंख लगती नहीं
कौन सी बात है
किसलिए रात दिन
जागती जा रही जि़ंदगी
सिर्फ सपने पे
उम्मीद का बोझ क्यों
टांगती जा रही जि़ंदगी