विशेष : सूफी काव्य :
चौदहवीं शताब्दी में मुल्ला दाऊद द्वारा रचित सूफी काव्य परंपरा की पहली
रचना ‘चन्दायन’ में लोरिक और चंदा की प्रेमकथा को मसनबी शैली में प्रस्तुत
किया गया है। चंदायन की भाषा में अवधी, भोजपुरी, ब्रज तथा खड़ीबोली का
अद्भुत मिश्रण हुआ है –
जेहि हिय चोट लागि सो जानी
कइ लोरिक कइ चंदा रानी
सुखी न जान दुख काहू केरा
जानइ सोइ परइ जेहि बेरा
मुगल शासक जब आक्रमण करते हुए उत्तर भारत से दक्षिण भारत की ओर गए,
तब उनके साथ उनके आस-पास बोली जाने वाली खड़ीबोली भी वहां पहुंची और
वहां की भाषाओं के संपर्क में आने के बाद उनकी भाषा का जो रूप स्थिर हुआ,
उसे दक्खिनी के नाम से जाना जाता है।
यह खड़ीबोली का ऐसा रूप है, जिसमें ब्रज और फारसी के अलावा दक्षिण भारतीय
भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी प्रचलित हैै। दक्खिनी के पहले कवि ख्वाजा बंदानवाज
गेसूदराज हुसैनी (1318-1422 ई0) माने जाते हैं। इनके समकालीन शाह मीरान द्वारा
लिखित ‘मरकुबुल कलूब’ तथा शाह बुरहाबुद्दीन द्वारा रचित ‘कलमतुल हायकात’
तत्कालीन गद्य की उद्धरणीय रचनाएं हैं