सिनेमा : रेलगाड़ी :
सिर्फ ट्रेन के ही नहीं, बल्कि जिंदगी के सफर का भी यही फलसफा है कि
बीच में कई लोग अपना स्टेशन आते ही साथ छोड़कर उतर जाते हैं और कुुुुछ
लोग चढ़कर नए हमसफर बन जाते हैं। हृषिकेश मुकर्जी की फिल्म ‘आशीर्वाद‘
के लिए वसंत देसाई के संगीत निर्देशन में कुछ ऐसे ही सीधे सादे बोलों के रचयिता
हैं हरीन्द्र नाथ चट्टोपाध्याय और गायक अशोक कुमार।
रेलगाड़ी रेलगाड़ी
छुक छुक छुक छुक
बीच वाले स्टेशन बोलें
रुक रुक रुक रुक
बीच वाले स्टेशनों के नाम बताने वाले रेल के इस खेल में बच्चे खूब मस्ती करते हैं।
बड़े हो जाते हैं, तो भी ट्रेन में चढ़कर मस्ती करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने
देते। फिल्म ‘सोने की चिडि़या’ में ओ पी नैयर की धुन और साहिर लुधियानवी के शब्दों
के सहारे छोटे छोटे बच्चे एक दूसरे के पीछे लाइन बनाकर ही रेल चला लेते हैं –
छुक छुक छुक छुक रेल चले
चुन्नू मुन्नू आएं कोई खेल चले
पीपनी बजे जोर से
घर की छत उड़े शोर से