रूख न काटा :

rukhगीत : रूख न काटा

गैस मिलैं बजार मैं मिलौं मड़तेल
छाडि़ दिय अब आंसि बड़्याट को खेल

पार भिड़ मैं तू को छै घस्यारी रूख न काटा
इनूं बचूनै कि तेरि जिम्मेवारी रूख न काटा

रूख हुनीं द्याप्त जस रूख भगवाना
झाड़ पात फल फूल इन दिनान पराना

पराना लिजी होलि समझदारी रूख न काटा
पार भिड़ मैं तू को छै घस्यारी रूख न काटा

जो छन अनपढ़ गंवार उं काटनी रूख
दुनिया देखनै अब धरती को दूख

आप्न खुट मैं किलै बनकाटि मारी रूख न काटा
इनूं बचूनै कि तेरि जिम्मेवारी रूख न काटा

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Published by

Dr. Harishchandra Pathak

Retired Hindi Professor / Researcher / Author / Writer / Lyricist

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