सिनेमा : रेल
पूछने वाले अक्सर पूछ लेते हैं कि – ये रास्ता कहां जाता है ?
और बताने वाले न्हें किसी जगह का नाम भी बता देते हैं, मगर
सच तो यही है कि कोई भी रास्ता कहीं नहीं जाता। इसी तरह
रेलवे की पटरी भी कहीं नहीं जाती, लेकिन आम बोलचाल में
रास्ता भी जाता है और रेल भी चलती है।
फिल्मी गीतों में चलने वाली इस रेल की चाल ढाल व रूप रंग के
विकास की भी एक कहानी है। फिर 1949 की फिल्म ‘नाच’ में
हुस्नलाल भगतराम के संगीत निर्देशन में गीता दत्त व लता मंगेशकर
ने एक गीत गाया – ‘छक छक चली हमारी रेल ….ये है आग
पानी का मेल’। बहुत ही सरल शब्दों में मुल्क राज भाखरी द्वारा
लिखित इस गीत का पहला अंतरा उद्धरणीय है –
लिए जा रही है ये किसी को बिछड़ा सजन मिलाने
कोई छोड़ अपने संगी को चला है दूर ठिकाने
किस्मत से ही होते हैं ये बिछड़ों के फिर मेल
छक छक चली हमारी रेल ……..