04 – प्रकृति परक कथाएं : ये कथाएं कुमाऊं की प्रकृति के विविध उपादानों से
अभिभूत हैं। इनमें चांद, सूरज, पहाड़ों, नदियों, झरनों, पेड़ों, पौधों, फूलों आदि
की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये भी प्रसंग के अनुसार कथा के अन्य पात्रों के
साथ आम आदमी की तरह व्यवहार करते हैं। अपनी भाव प्रवणता के कारण प्रकृति
परक कथाएं श्रोताओं को खास तौर पर अच्छी लगती हैं। उदाहरण –
क – लोककथा : दिन दिदी जाग जाग
मूल कथा : एक सासु छि बडि़ खंग्यारि। वीकि एक नानि ब्वारि छि। सासु आपणि
ब्वारि हं बड़ नक करने भै। तिख-त्यारन हं लै उकै मैंत नि भेजनेर भै। आपण इज,
बाबु, दाद, भुलिनैं कि याद में छोरि उसिकै कलपनेर भै, पर सासुक अघिन मुख
कसिक खोलौ। जब लै उ आपण गौं कि और ब्वारिन कैं बटि बाटि बेर मैत हं जांण
देखनेर भै त आपं लै रूग्तुंगानि है जानेर भै।
एक दिन रत्तै डरनै डरनै ब्वारिलै सासु थैं कै – ‘‘ज्यू, द्वि चार दिंनाक लिजि मैकै लै
मैत भेजि दिनां त कस हुन। एथकै दाद लै छुट्टिन में घर ऐ रे हुन्योल। मैं भेंट घाट
करि बेर चौथ पचां दिन हुं वापिस ए जूंल।’’ ब्वारिक एतुक कूंण छियो कि सासू भट क
जस गुद तिडि़ पडि़।’’ ‘‘हाइ, यां त त्योर मन किलै लागल, यां त तुकैं उचेणण लागि
रई। न्यारै धरि राखौ त्यारा मैत पन। तु मैत जा, बांकि बुति बजि रै हुनेलि। मैं यां घा
लाकड़क करूॅं।’’ व्यारि ल कै – ‘‘नैं ज्यू ! मैं यांकि सब घा लाकडै़ कि बुति करि बेर
जानिं, तुम चारै दिनाक लिजि लै भेजि दिना, चारै दिन।’’
सासु व्वारि कैं चार दिनाक लिजि मैत भेजण हुं राजि त हैगे, पर आपणि टेड़ नि छोडि़।
व्वारि थैं कै – ‘‘ तु आज व्यालै जयै पै, पर जांण हैबेर पैलि सात गोठनक मोव गाडि़
जयै, डाल त छै न्हां। यो सात सुप धान कुटणि, मुसल त टुटि रौछ। तु यो धान कुटि
जयै ओर सात गढालि घा कि काटि जयै।’’ दातुलि ज्यौडि़ सासुल पैलियै लुकै दि। (क्रमशः)
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