साहित्य : अकहानी :
इसके बाद कहानी कभी व्यक्तिवादी विद्रोह भंगिमा की तरफ मुखातिब हुई और
कभी यौन संबंधों की तरफ, लेकिन ये दिशाएं भी उसे खास रास नहीं आईं।
फिर सचेतन कहानी का आंदोलन उसे न केवल आम आदमी तक ले गया,
बल्कि उसके परिवेश के साथ भी जोड़ता रहा। इसलिए वह जन सामान्य के
अभावों, संघर्षों, विवशताओं, समस्याओं या प्रयासों के साथ घुल मिल कर
आगे बढ़ी।
इस बीच समाजवादी, जनवादी यहां तक कि अकहानी जैसा कोई भी नाम हिंदी
कहानी ने क्यों न रख लिया हो, पर उसकी भाव धारा भारतीय जीवन दर्शन तथा
सामाजिक यथार्थ के बीच ही प्रवाहित होती रही। प्रेमचंद की परंपरा में प्रगतिशील
यथार्थवादी कहानियों का शिल्प अपने कथ्य के अनुरूप उभर कर सामने आता रहा।
मनोविश्लेषणवादी कहानियों का अपने नूतन कथ्य के लिए अभिनव शिल्प की ओर
उन्मुख होना अस्वाभाविक नहीं था, लेकिन कथ्य और शिल्प का सहज निर्वाह न
होने पर कहानी का समग्र प्रभाव शिथिल पड़ जाता है। एक पहिए वाली गाड़ी की
तरह केवल शिल्प को परिमार्जित करते हुए कथाधारा को आगे बढ़ाने वाले कहानीकार
इसकी नैसर्गिक प्रगति को गति नहीं दे पाए।