लोककथा : धोति निचोडि़ मोत्यूं मिल :
दूसरे दिन सबसे बड़ी बहू बूढ़े के पास जाकर अत्यन्त विनम्रतापूर्वक बोलीः ”ससुर जी,
मैं कल से सरयू जाकर, नहा धो, आपके स्नान के लिए सरयू-जल भरकर लाऊँगी।
देवरानी को वहाँ से पानी लाते-लाते बहुत दिन हो चुके हैं।“ बूढ़े ने यह सोच कर कि
सबसे छोटी बहू को कुछ आराम मिल जावेगा, स्वीकृति दे दी। दूसरे दिन जब बड़ी
बहू अपने ससुर की धोती निचोड़ने लगी इस आशा से कि अब मुझे भी मोती मिलेंगे
तो धोती से कीचड़ छिटक कर उसके सारे शरीर में भर गया। धोती को वहीं छोड़ वह
भागी अपनी देवरानियों को यह सब बताने के लिए।
अब तो बड़ी बहू ने अपने ससुर से स्पष्ट कह दिया कि वह कल से पानी नहीं लावेगी।
बड़ी बहू ने अन्य बहुओं को अपने साथ मिलाकर रातोंरात छोटी बहू के घर से मोतियों
का सन्दूक चुरा लिया। दूसरे दिन छोटी बहू ने देखा कि मोतियों का सन्दूक लापता है।
बुरा तो बहुत लगा उसे, परन्तु उसने अपने ससुर की सेवा-टहल में अब भी कोई कसर
न उठा रखी। पहले की ही भाँति रोज प्रातः उठ कर सरयू से अपने ससुर के नहाने के
लिए पानी भर कर लाने लगी। और अब ससुर के नहाये की धोती निचोड़ते समय जब
पानी की बूँदें धरती पर गिरीं तो वे हीरे और लाल बन गई।
एक दिन बड़ी बहू छोटी बहू के पास जाकर बोलीः ”बहिन, तुम्हें तो ससुर जी की धोती
निचोड़ कर मोती मिले। मैं प्रातः सरयू-घाट से गगरी भर लाई। घर आकर देखा तो गगरी
में खचाखच मोती भरे निकले। तुम्हें विश्वास न हो, इसीलिये मैं तुम्हें दिखाने लाई हूँ वे
मोती।“ यह कहते-कहते उसने चोरी के मोतियों की थैली छोटी बहू के सामने खाली की
तो ईंट पत्थर के टुकड़े खड़खड़ाते हुए धरती आ गिरे। बड़ी बहू तो खिसिया कर सिर भी
न उठा सकी। छोटी बहू बोलीः ”दीदी, सरयू में हीरे लाल भी हैं, मोती भी हैं और ईंट
पत्थर भी। जो जिस भाव से प्रेरित होकर काम करता है, उसे वही प्राप्त होता है। ससुर
जी की सेवा-टहल मेरे लिए मोती लाई तो आपके लिए ईंट पत्थर।“