साहित्य : प्रेमचंद :
प्रेमचंद ने गौरवशाली अतीत के आदर्श की अपेक्षा अभावग्रस्त वर्तमान के
यथार्थ को अपना कथ्य बनाना बेहतर समझा। उनके इस निर्णय से कहानी
न केवल अपने समाज से जुड़ी, बल्कि उसे पनपने के लिए सही जमीन भी
हासिल हुई। इस निम्न मध्यम वर्गीय जमीन के खुरदरेपन में साहित्यिक
सौंदर्य का जो अकूत भण्डार हाथ लगा, उसे पाकर अन्य कहानीकार भी
समृद्ध हुए।
प्रेमचंद ने हिंदी कहानी को कथ्य की दृष्टि से ही नहीं, शिल्प की दृष्टि से
भी हिंदुस्तान के ताजातरीन संदर्भों से जोड़ा। जन प्रचलित भाषा में काल्पनिक
भावुकता से बचते हुए उन्होंने शोषकों व शोषितों की वस्तुस्थिति का चिट्ठा
खोला। नतीजतन उनके बाद के कहानीकारों की कहानियां भी अपने परिवेश
के लोगों की चेतना एवं व्यंजना से बंधीं रहीं।
आजाद मुल्क की नई कहानी में किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह से मुक्त होकर
केवल परिवेशगत सत्य को महत्व दिया गया। अतः महानगर, शहर, कस्बे
और गांव के चरित्र व उनके जीवन यथार्थ अत्यंत प्रामाणिकता के साथ कहानी
का अंग बने; जिनमें यदा कदा नए जीवन मूल्यों के साथ साथ आने वाले
सुनहरे कल का सपना भी झलकता था, पर यह सिलसिला भी ज्यादा दिनों
तक नहीं टिक पाया।