दोहावली : उमर :
बुबू तुमूं फुरसत नाहन
ना कभ्भैं ना आज
बुड़ हुन खन लै फालतू
टैम चैंछ मेहराज
ठुल छन उन समझून खन
हा्त लगै उठूनान
लेकिन उन छन और ठुल
जिन प्रेमै्ल कूनान
बंढ्छि जवानी मैं उमर
आमदनी की न्यारि
बुड़्याकाल मैं खर्च जसि
घटनी जांछि सुन ब्वारि