साहित्य : कहानी :
आमतौर पर साहित्य के दो रूप दिखाई देते हैं – पद्य एवं गद्य। इन रूपों
के अंतर्गत भी आकार प्रकार के आधार पर अनेक भेद किए जाते हैं। गद्य
की विधाओं में नाट्य साहित्य, स्मारक साहित्य और कथा साहित्य जैसा
वर्गीकरण उपलब्ध होता है। कथा साहित्य में मुख्यतः इन विधाओं की
गणना की जाती है – उपन्यास, लघुकथा और कहानी।
कहानी का शिल्प, किसी फिल्मी गीत की धुन की तरह नहीं होता,
जिसके सांचे में गीतकार वांछित कथ्य समायोजित करता है। वह तो
कहानी के कथ्य के अनुरूप स्वतः पल्लवित होता है, जैसे किसी पदार्थ
पर मूर्तिकार की कल्पना साकार होती है। कहानीकार का संप्रेषण जितना
सहज होता है, कहानी उतनी ही अच्छी बनती है। कहानी जितनी अच्छी
बनती है, कहानीकार भी उतना ही अच्छा बन जाता है।
अच्छे कहानीकार प्रेमचंद से पहले की कहानियों को प्रायः बहुत गंभीरता
से नहीं आंका जाता, पर उनमें भी भारतीय जीवन मूल्यों की गरिमा का
अभाव नहीं है। भाषा शैली की दृष्टि से यदि उनमें अपेक्षित प्रौढ़ता नजर
नहीं आती, तो इसका कारण यह है कि उन दिनों हिंदी कहानी के साथ
साथ हिंदी भाषा भी अपने पैरों पर खड़ा होना सीख रही थी।