सिनेमा : भारतीयता :
जमीन ए वतन को आज बाहर से उतना खतरा नहीं है,
जितना अंदर होने वाली घटनाओं से है। देश की आंतरिक
विकृतियों से राष्ट्र की एकता को क्षति पहुंच रही है। मुख्य
रूप से जाति प्रथा ने सामाजिक संगठन को ध्वस्त करके
पारस्परिक आत्मीयता को मिटाया है; जिसके परिणामस्वरूप
ऊँच नीच व छुआछूत की बातों ने विकराल रूप धारण कर
लिया है। इस भेद की खाई को केवल भारतीयता का भाव
ही भर सकता है, एकता का विचार ही पाट सकता है –
जात पात के बंधन तोड़ो उंच नीच को छोड़ो
नए समय से नए जगत से अपना नाता जोड़ो
बदलो ये ढंग पुराना आया है नया जमाना
एैसा करो सवेरा जिसकी कभी न आए शाम
आराम है हराम
– प्रेम धवन (फिल्म : अपना घर)