रुबाई : खुशनसीबी
जर्रे जर्रे में हर इक शै में
जो मचलती है
उसी कुदरत की अदाओं ने
लुभाया है मुझे
दिल ओ दिमाग की
गहराइयों में दुबके हुए
कुछ तजुर्बों की सदाओं ने
जगाया है मुझे
मेरी नजर में थकावट के
निशां बाकी हैं
मेरे सफर में रुकावट के
निशां बाकी हैं
तमाम बदनसीबियों की
खुशनसीबी से
मेरे जहर में मिलावट के
निशां बाकी हैं