सिनेमा : समस्या :
किसी राष्ट्रीय पर्व को इतनी धूमधाम से मनाना स्वाभाविक ही है, पर यह सब
धूमधाम तभी सार्थक है जब धूमधाम मनाने वालों के हृदय भी उल्लसित हों।
देश के प्रत्येक नागरिक को हार्दिक खुशी हो। इस संदर्भ में गंभीरतापूर्वक विचार
करने पर ऐसा लगता है कि पर्व की खुशी को देश की विषम समस्याओं की नजर
लग गई है। इन समस्याओं के मूल में अवस्थित विकारों का निराकरण किए बिना
इस पर्व का नैसर्गिक हर्ष नहीं भोगा जा सकता –
ए भारत माता के बेटो !
सुनो समय की बोली को
फैलाती जो फूट यहां पर
दूर करो उस टोली को
सारी बस्ती जल जाती है
मुट्ठी भर अंगारों से
संभल के रहना अपने घर में
छुपे हुए गद्दारों से
– भरत व्यास (फिल्म : तलाक)