गजल : अमराइयां :
घटाएं झूमकर छाने लगी हैं
हवाएं नाचने गाने लगी हैं
धनुष सा तानकर सूरज की किरनें
रंगीले तीर बरसाने लगी हैं
वो बूंदें जो जमा हैं आसमां में
जमीं की प्यास भड़काने लगी हैं
तुम्हारी याद की अमराइयां फिर
महकने और बौराने लगी हैं
गजल : अमराइयां :
घटाएं झूमकर छाने लगी हैं
हवाएं नाचने गाने लगी हैं
धनुष सा तानकर सूरज की किरनें
रंगीले तीर बरसाने लगी हैं
वो बूंदें जो जमा हैं आसमां में
जमीं की प्यास भड़काने लगी हैं
तुम्हारी याद की अमराइयां फिर
महकने और बौराने लगी हैं