लोकगीत : संस्कार गीत :
अनिवार्य संस्कार गीतों के बाद संस्कार विशेष से संबंधित गीत गाने की परिपाटी है,
जो मौखिक परम्परा में पल्लवित होने के कारण शिल्प की दृष्टि से भले ही उन्नीस
लगते हों, पर भाव की प्रबलता के कारण प्रभाव की दृष्टि से पर्याप्त हृदयस्पर्शी होते हैं।
उनके विधि-विधान का अनुपालन ही लोकजन को एक विशेष प्रकार के सामाजिक ढांचे
में ढालता है।
एक संस्कार गीत में जन्म से लेकर विवाह तक के दैनिक, मासिक व वार्षिक संस्कारों
का क्रमबद्ध उल्लेख मिलता है। पहले जन्म से लेकर नामकरण तक के कर्मों का विवरण
है; जैसे- पहले दिन ‘जात’ लगाना, तीसरे दिन ‘तिछोड़ी’ करना, पांचवें दिन ‘पंचोली’
होना, छठे दिन ‘षष्ठी’ पूजन, नवें दिन ‘नौल’ स्नान, ग्यारहवें दिन ‘नामकरण’ आदि।
बाद में बाइसवें दिन ‘बैसोली’, छठे महीने ‘अन्नप्राशन’, वर्ष पूरा होने पर ‘जनमबार’,
तीसरे वर्ष ‘चूड़कर्म’, पॉंचवें वर्ष ‘कर्णवेध’, आठवें वर्ष ‘जनेऊ’ और बारहवें वर्ष ‘विवाह’
का वर्णन है। लोक व्यवहार में उक्त अवस्था में आज इतने कर्मों का विधान नहीं रह गया है,
पर कम से कम इन संस्कारों के नाम यथावत् संरक्षित हैं।