दोहावली : स्तंभ :
लाभ हानि जय पराजय
मौसम जस बदलाव
त्यर हा्त मैं के लै नाहन
कब चलि जौ कसि हाव
लुअ है लै सा्र लांग्छ दुख
सुख रुअ जस निःसार
कालांतर मैं मन स्वयं
कर्ल सटीक विचार
अगर सफलता अंकुरित
हुन्ने भित्रै भित्र
तब चैनान स्तंभ द्वी
परिजन एवं मित्र