भाषा : लिंग :
संज्ञा की यौन प्रकृति का बोध कराने वाले शब्द को लिंग कहते हैं। कुमैयाँ में दो लिंग प्रचलित हैं- पुलिंग और स्त्रीलिंग। समस्त संज्ञाओं को इन दोनों लिंगों के अन्तर्गत विभाजित करते समय एक समस्या यह हो सकती है
कि जड़ पदार्थो में पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व का आरोप किस आधार पर किया जाए ?
इस सिलसिले में शब्द रूप एवम् परम्परा को छोड़कर अन्य कोई आधार उपलब्ध नहीं होता। वास्तविकता यह है
कि लिंग एक आन्तरिक कोटि है। संज्ञा प्रतिपादिक के साथ वह आबद्ध है। वह स्थिर और प्रसंग निरपेक्ष है। यह
रूढि़ से अर्थात् प्रयोग से निर्णीत होता है। इसको जानने के लिए लोक प्रयोग तथा अभ्यास की आवश्यकता होती
है और इतर भाषा-भाषियों को इसका पता मातृ भाषियों से अथवा शब्द कोशों से लगता है।
लिंग निर्धारण का आधार मूलतः प्राकृतिक लिंग भेद ही है। प्राणिवाचक संज्ञाओं में पुरुष वर्ग वाची संज्ञाएँ पुल्लिंग
का तथा स्त्रीवर्ग वाची संज्ञाएँ स्त्रीलिंग का बोध कराती हैं, जैसे- बल्द, बाच्छ, चड़, का्क (पुल्लिंग) और गोरु, बाच्छि, चडि़, काखि (स्त्रीलिंग) कुछ संज्ञाएँ दोनों लिंगों से सम्बन्धित होते हुए भी एक ही लिंग में प्रयुक्त होती
हैं ; जैसे – माक्ख (मक्खी पुल्लिंग) और पुत्लि (तितली स्त्रीलिंग) इसी प्रकार समूह वाची संज्ञा शब्दों मौ (परिवार) का पुल्लिंग में और पलटन / फौज का (स्त्रीलिंग) में प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त आकार
भी लिंग भेद का कारण प्रतीत होता हैः
कुड़ (बड़ा मकान) कुडि़ (छोटा मकान)
डाल्ल (बड़ी डलिया) डाल्लि (छोटी डलिया)
कुमैयाँ में पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के लिए निम्नलिखित प्रत्यय प्रयुक्त होते हैंः
हिन्दी कुमैयाँ स्त्री -प्रत्यय स्त्रीलिंग शब्द
देवर द्योर + आ्नि द्योरा्नि
चेला चेल + इ चेलि
मास्टर मास्टर + नि मास्टर्नि
नपुंसकलिंग छिन या न्हाँतिन य ले बताया हो। महाराज।
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