रुबाई : मैं :
अपनी आदत के तकाजों में
खो गया था मैं
अपनी हसरत के इलाजों में
खो गया था मैं
किससे शिकवा करूं अब
उम्र की बरबादी का
जिंदगी तेरे रिवाजों में
खो गया था मैं
मेरे मजार पे ए मौत
तू उदास न हो
तेरे करीब तेरा होके
आ रहा हूं मैं
जिंदगानी के उभरते हुए
हालातों को
वक्त के जाम पिलाकर
मना रहा हूं मैं