लोकगीत : अभिषेक :
गंग जमुन को पाणि ए
कुंभ कलश को पाणि ए
सिंचनीं पुरोहित ए
छोड़नीं जजमान ए
तुमरी सोहागिली जनमैं आइवांती ए
जनमैं पुत्रवांती ए
सिंचनी अरजुन ए भीम ए वशिष्ट ए
छोड़नीं रामीचंदै छोड़नीं लछीमण ए
पढ़ी गुणी बिरामनै देला असीस ए
जीयौ तुमि जजमानै लाखै बरीस ए