लोककथा : धोति निचोडि़ मोत्यूं मिल :
नानि व्वारि लै ससुर थैं आऔ बैठो कै और कूंण लागि -‘‘सौरज्यू, मैं गरीब घरै कि। घर में धुलैकि
फांक न चावल क गुद। आपुं लै परदेस भै। मैं आब तुमरि आदिर खादिर लै कसिक करूं।’’ व्वारि कि
बातन कैं सुणि बेर बामण कैं हिकमत पडि़, बुलाणौं कि – ‘‘ब्वारी, मैं खानों पिंनो के नै चैंन। जनम
भरि सरज्युक जलैल नै बेर बुडि़युं। आब खुटन में सगत रई न आंखन में जोत। हात पुजन सरज्यु हैबेर
लेक नौला पानिं ल नाण पड़ो। तु राती राती सरज्युक घाट बट नाइ धोइ बेर लौटण बखत एक गगरि
पानिं म्यार नांन हि लियौ।’’कान्सी व्वारिल बुड़ौक बचन धरि दि और दुसार दिन बैं खुसी खुसि रतिव्यान
सरज्यु जैबेर, नै ध्वैबेर आपण ससुर खिन सरज्यु बै एक गगरि पानि लि औनेर भै। घर मैं जब बामणै ले
नै हालो त ब्वारि वीकि नइयै कि धोति लै आफि ध्वै निचोडि़ सुकूण खित दिनेर भै। जब व्वारि घोति निचोड़ौ
त निचोडि़यै कि पानिं की बूंद भिं छुटते ही मोत्यूं बणि जानेर भैंन। व्वारि उननकैं सिमेर बेर घर में बगस में
धरि ल्हिनेर भै।
बहुत दिनना बाद व्वारिल एक दिन ससुर थैं कै -‘‘सौरज्यू, आब एक दिन पुज पाठ करि, दस पांच बामण
और पास पड़ोसी जिमै दि परायण करि लि। इन्तजामै कि तुम फिकर निं कर, मैं सब ठीक करि ल्यूंल।’’
बुड़ै ल लै खुसि खुसी होई भरि दि। व्वारि लै पास पड़ोस, इष्ट मित्र, बामणन कैं बुलैबेर खवै परायण करवै
और सबन कैं एक एक मोत्यूं दच्छिण दि। जब जेठानिनैं लै द्योरनिक योस कारबार देखौ त जलि बेर छारो
है गैन। द्योरानि थैं जै बेर बुलाणिन – ‘‘बैनीं बैनिं, तु गरीब घरै कि चेलि, मालिक त्योर परदेस, तु यो नौ
ज्यूंनार छतीस परकार खाण और मोत्यूं कि दच्छिण कां कसिक ल्याई। सांचि सांचि बतौ।’’ नानि व्वारि सिदि
सादि भै। जसो भौछि उ एक बतै कूंन लागि – ‘‘यो सब सौरज्यू कि स्यो और सरज्युक पानिंक परतापै लै भौछ।’’ ….. क्रमशः