लोककथा : धोति निचोडि़ मोत्यूं मिल :
मूल कथा : एक बामणा का सात च्याला, सात व्वारी छिन। सातै च्याला नौकरि में परदेस भै, सातै व्वारिया
घर भैन। बामण बड़ पुज पाठ, धरम करम वालो भै। जब तक हात खुट चला, रोज रत्तै घर बटिक एक मील
दूर सरज्यू में जैबेर नै-ध्वे, सरज्यु घाट में पुज पाठ करनेर भै। बुडि़यांकाल जब सगत सब रै ऐगई त बामण
रत्तैं मील भरि दूर सरज्यु में नाण हुं त जै सकनेर भै नैं। घरा कै नजीका का नौलाक पाणिल नानेर भै। व्वारीलै
बुड़ौ को के जसो ख्याल निं करनेर भैन। एक दिन बामणैल मनै मन कयौ -‘‘जनम भरि सरज्युक जलैल नेबेर
मैं यो बुडि़यांकाल जै नौला का पाणिल हांट-भांट खकोलणयुं। सात व्वारी छन, मेरि, बारि बारि लै रोज एक एक
गगरि सरज्युक जल भरि ल्यूंनिन त मैं आज लै वी सरज्युक जलैल नै सकछयुं। धैं एक बखत कै त देखूं।’’
एसि सोचि बेर उ आपणि ठुलि व्वारि थैं जैबेर बुलाण -‘‘व्वारी व्वारि, सारि उमर त मैल सरज्युक जलैल नै
बेर बितै दि। आब नसन में खून निं रैगयो त सात व्वारिनाक है बेर लैक मेंस यो नौला का पाणिल नाण पड़नौं।
तु मेरि सबन है ठुलि व्वारि छि। रत्तै उठि बेर सरज्यु में नै ध्वे बेर उंण बखत एक गगरि म्यार नाण हिं लै भरि लौ।’’ ठुलि व्वारि बुलाणि – ‘‘सोरज्यू, मील भरि दूर सरज्युक घाट, रत्तै रत्ते कि अरडि़। म्यारा नाना-नाना नानतिन। तुम त यो कस बूड़ीणौंछा जौ यसि बात कूंछा। मेरि कयां त यो काम निं हो, तुम आपणि और व्वारिना
का पास जाव, उननि थैं को, पानिं भरवा।’’
बुड़ आपण जसो मुख ल्हिबेर लौट। आपणि दुहरि व्वारि थैं बुलाण – ‘‘ब्वारी, तु सयांणि छि। रत्तै रत्तै उठि बेर सरज्युक घाट जैबेर नाणहिं एक गगरि पानिं भरि लौ’’। उ व्वारिल लै कै – ‘‘नैं नैं सोरज्यू, एक मील दूर त सरज्यु घाट, मैं रात छिनैं एकलि एतुक दूर जैबेर, नई आंगलैं पानिं त नै लै सकनीं।’’ एसिकै बामण आपणि और व्वारिनाका पास लै गे और सबनैं थैं विकैं उसै जवाब मिलो। आखिर बुड़ैलै मरि मनैल जसो सोचो कि कान्सी व्वारि थैं लै जै उंछ। धैं उ कि कैंछि। …. (क्रमशः)