गीत : विज्ञापन :
कछुआ छाप अगरबत्ती सा
क्रमशः सुलग रहा है जीवन
अखबारों ने ज्ञान बढाया
और पत्रिकाओं ने व्यंजन
रेडियो कहे मन की बातें
टी वी सिखलाता रहन सहन
अब विवेक का हाथ पकड़ कर
राह दिखाते हैं विज्ञापन
मैल में छिपे कीट अणुओं को
धोए चाहे मैल बहाए
हमें तंदुरुस्ती से मतलब
इसीलिए साबुन ले आए
ना विरक्ति है ना अपनापन
भादों हरे न सूखे सावन