सिनेमा : सवाक
सवाक् हिंदी फिल्मों की बनावट में समय के साथ कई तरह के बदलाव आए, पर 1931 में ‘आलमआरा’
से प्रारंभ नाच गाने की परंपरा आज भी जस की तस है। स्वांग, पारसी रंगमंच और संगीत नाटकों से
उद्भूत इस मनभावन शुरुआत ने हिंदी सिनेमा को एक ऐसा जबरदस्त फारमूला पकड़ा दिया कि आम तौर
पर हर फिल्म में कुछ गाने जरूर होते है।
देश की आजादी के वर्ष 1947 में एक फिल्म बनी थी ‘शहनाई’, जिसके संगीतकार सी रामचंद्र थे। सबसे
पहले उन्होंने ही देसी और विदेशी संगीत के समन्वय की दिशा में रुचिकर प्रयोग शुरू किए थे। गीता दत्त,
लता मंगेशकर, चितलकर आदि की आवाज में इस फिल्म के राजेन्द्र कृष्ण द्वारा लिखित निम्नलिखित गीत
के संगीत संयोजन में दृश्य की आवश्यकता के अनुरूप इंजन की सीटी वगैरह की आवाज को भी घोलने का
प्रयास किया गया है –
जवानी की रेल चली जाए रे
जवानी की रेल की अनोखी कहानी
इज्जत की आग और आंखों का पानी