विनोद :: बाल-विद्या :: क्रमशः
अगले दिन सुरिन्दर मिल गया। परे’ाान लग रहा था। मैंने पूछा ‘क्या प्रोब्लम है भाई !’
बोला – ‘मेरे बेटे का एडमीशन नहीं हो पा रहा है।’
मैंने कहा – ‘डोण्ट वरी ! कल मुझे एक पेयर मिला था। मियां-बीवी दोनों अलग-अलग स्कूलों में हैं।
कहीं न कहीं तो उल्लू सीधा हो ही जाएगा।’
दूसरे दिन हम लोग मुलुण्ड गए। सरस्वती बाल मंदिर जाकर पता चला कि सरस्वती बाई अकेली है।
उसने टाइम पास करने के लिए अपने घर में उन बच्चों के लिए ‘क्रेच’ खोल रखा है, जिनके मां-बाप
सर्विस करते हैं। वे अपने बच्चों को दिन में वहां छोड़ जाते हैं। सुचित्रा बेन उन बच्चों की सू-सू और पाॅटी
मैनेज करके कपड़े बदलने का काम करती है।
अभी भी आशा की एक किरण बाकी थी। सुचित्रा से उसके हसबैण्ड का पता लेकर हम बाल-विद्या मंदिर पहुंचे।
वहाँ सुचित्रा का हसबैण्ड एक आदमी के बाल काट रहा था। मैंने पूछा – ‘यह क्या कर रहे हो ?’
वह बोला – अपना काम कर रहा हूं।
मैंने पूछा – यही बाल-विद्या है तुम्हारी ?
उसने बताया – बाल यानी हेयर , विद्या यानी सैटिंग।
मैं समझ गया – बाल विद्या मंदिर माने हेयर कटिंग सेलून।