गजल :: न रहने पाए ::
उनकी चाहत है कि ये बाग न रहने पाए
मेरी हसरत है कोई आग न रहने पाए
बाद मुद्दत के तेरी याद के अँकुए फूटे
इनके होंठों पे कोई माँग न रहने पाए
तेरे ख़्वाबों की नई शाखें अभी छोटी हैं
इनपे हँसिए का कोई दाग न रहने पाए
पेड़ बढ़ने लगे हैं अब तेरे ख़्यालों के
इनकी सरहद में कोई नाग न रहने पाए