भाषा :: अक्षर ::
एक सांस के प्रयास से उच्चरित होने वाले एक या अनेक स्वनिमों की लघुतम शीर्ष युक्त इकाई को अक्षर कहते हैं ; जैसे – राम। अक्षर का शीर्ष स्वर होता है, जो अपने पूर्व-व्यंजन या पर-व्यंजन अथवा दोनों की अपेक्षा अधिक मुखर होता है। राम में शीर्ष स्वर आ पूर्व गह्वर व्यंजन र् तथा परगह्वर व्यंजन म् की अपेक्षा अधिक मुखर है। व्यंजन से समाप्त होने वाले अक्षर को शुद्धाक्षर कहते हैं, जैसे: हिट्, टिप् और स्वर में समाप्त होने वाले अक्षर को मुक्ताक्षर कहते हैं; जैसे – ले, दे।
सम्बन्ध तत्त्व ::
वाक्य में प्रयुक्त शब्द में कुछ ऐसा भी होता है, जिसके आधार पर वह अन्य शब्दों से अपना सम्बन्ध दिखला सके या अपने को बाँध सके, जब कि कोश में दिए गए शब्द में ऐसा कुछ नहीं होता। यदि वाक्य के शब्द एक दूसरे से अपना सम्बन्ध न दिखला सकें तो वाक्य बन ही नहीं सकता। इसका आशय यह है कि शब्दों के दो रूप हैं। एक तो शुद्ध रूप या मूल रूप, जो कोश में मिलता है और दूसरा वह रूप, जो किसी प्रकार के सम्बन्ध तत्त्व से युक्त होता है।
रूप ::
एक या एकाधिक अक्षरों के योग से शब्द बनते हैं, जो अर्थ की दृष्टि से स्वतन्त्र होते हैं ; जैसे — रमेस, बजार, खा्न्, जा्न्। इसी प्रकार एक या अनेक शब्दों के योग से वाक्य बनते हैं, पर वाक्य में प्रयुक्त होने के लिए शब्द को वाक्य की आवश्यकता के अनुसार व्याकरणिक रूप धारण करना पड़ता है ; जैसे —- आज रमेस बजारै नै गय। ( बजार > बजारै / जान >गय )वाक्य में प्रयुक्त शब्द को रूप कहा जाता है।