कविता :: अगर ::
काली रात के अंधेरे को
चीरने की कोशिश में लगे
छोटे से दिए का विश्वास
अगर सूरज की पहली किरन
आने तक नहीं डगमगाता
तो सवेरा हो जाता है
दैवी आपदा को झेलने की
कोशिश में लगे
मासूम बच्चों का विश्वास
अगर कोई सहारा
मिलने तक नहीं डगमगाता
तो जीवन संवर जाता है
ढीठ पेड़ की छाल को
बेधने की कोशिश में लगे
खट्टे मीठे फलों का विश्वास
अगर कली के
फूटने तक नहीं डगमगाता
तो फूल खिल जाता है