प्रदूषण :: प्रभाव ::
प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने और वैश्विक तापमान बढ़ने से ऋतुओं के समय बदल रहे हैं। अचानक
बादल फटने या बेतरतीब बरसात से सारा पानी बेमतलब बर्बाद हो रहा है। एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण
के अनुसार 1900 ई0 से लेकर अभी तक पृथ्वी का तापमान 0.7 डिग्री सेलसियर बढ़ चुका है और
हर दशक में 0.2 डिग्र्री सेलसियर की दर से बढ़ रहा है। ऐसे में ग्लेशियर पिघलेंगे, जिससे समुद्र
का जल स्तर उठेगा और तटीय इलाका डूबेगा। नतीजतन नमक का तत्व भूजल को दूशित करेगा।
कहते है कि अगर 1 मीटर सी लैवल बढ़ता है, तो गुयाना जैसे देश की 80 प्रतिशत आबादी प्रभावित होगी।
जिस तरह पुरानी पीढि़यों की मनमानी का नतीजा नई पीढ़ी भुगतती है, ठीक उसी तरह बीसवीं शताब्दी
की गलतियों का दुष्परिणाम इक्कीसवीं शताब्दी की सबसे बड़ी पीड़ा का कारण माना जा रहा है। विकासशील
देशों की महत्वाकांक्षी योजनाएं अविकसित देशों की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए जूझती कोशिशों को
नाकामयाब कर देती हैं। गरीब देशों के गरीब लोगों के लिए अभी भी कई जगहों पर पीने के पानी का अभाव है।
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