सिनेमा :: वियोग ::
एक दिन अचानक मथुरा चला गया गोकुल में चैन की बंसी बजाने वाला। शेष रह गया उसका प्रेम।
प्रेम इतना संवेदनशील होता है कि प्रिय का मुंह फिरना तक बर्दाश्त नहीं करता, दूर जाना तो बहुत
बड़ी बात है। अंतर्मन के इंतजार का खोखलापन गूंजने लगा – ‘शाम भई घनश्याम न आए।’ फिर
फिल्म ‘अमर प्रेम में ‘रैना बीती जाए, श्याम ना आए। श्याम को भूला शाम का वादा, संग दिये
के जागे राधा।’
सवेरे राधा पूछने लगी – ‘बतादो कोई कौन गली गए श्याम ?’ कौन बताता ? सभी दुखी थे, सभी
चुप रहे। सोचा – ‘कर गया कान्हा मिलन का वादा, जमना किनारे खड़ी है कब से राधा’। उसे तो
बस एक ही रटन थी – ‘ बनवारी रे ! जीने का सहारा तेरा नाम रे ! मुझे दुनिया वालों से क्या
काम रे !’ उसकी यही आस्था दुनिया भर के प्रेमियों के लिए अनमोल मिसाल बन गई –
‘जैसे राधा ने माला जपी श्याम की,
मैंने ओढ़ी चुनरिया तेरे नाम की।’ (तेरे मेरे सपने)
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