विशेष :: प्रगति ::
अंधाधुंध विकास करने में मानव ने निरंकुश होकर अपनी वन संपदाए जल संपदा तथा कृषि योग्य
भूमि को बुरी तरह तबाह किया है, जो अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। बिजली उत्पादन
के लिए पहाड़ो में सुरंगे बनाने व नदियों के प्राकृतिक बहाव को रोकने से वन और भूमि की हानि
हो रही है साथ ही जंगल और पानी पर निर्भर जीव-जंतुओं का जीवन प्रभावित हो रहा है। अतः
हमें कुदरत के साथ उतनी ही छेड़.छाड़ करनी चाहिए, जितनी बहुत ज्यादा ज़रूरी हो ।
इन समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक विचार करने पर यह भी प्रतीत होता है कि वैज्ञानिक प्रगति के साथ-
साथ इस समस्या का रूप विकराल होता चला गया है। यहां पर यह भी स्पष्ट हो जाता है कि विज्ञान
ने अगर हमें जीवन की सुख.सुविधाएं मुहैया करवाई है, तो अनचाही मौत के मुह में भी धकेल दिया
है। कैसी विडम्बना है कि एक ओर प्रदूषण के कारण तरह-तरह की जानलेवा बीमारिया पैदा हो रही हैं
और दूसरी ओर चिकित्सा विज्ञान उन बीमारियों को रोकने के नए-नए प्रयोग कर रहा है। दवाएं बनाने
वाले कारखाने भी कम प्रदूषण नहीं उगलते।.. अधिक के लिए ‘DEVDAAR.COM’