शोले के अलावा इम्तिहान, खामोशी, श्याम तेरे कितने नाम, भूख, किताब, नया दिन नई रात,
शोर, साथी, संजोग, जानी दुश्मन, मेरा गांव मेरा देश आदि अनेक फिल्मों में कई अभिनेताओं
व अभिनेत्रियों ने अपनी कला के बूते पर विभिन्न अशक्त पात्रों का सशक्त अभिनय किया है। ऐसे
अभिनेताओं में संजीव कुमार और साधु मेहर क्रमश:‘कोशिश’ तथा ‘अंकुर’ में श्रेष्ठ अभिनय का
राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं।
कभी कभी ऐसा भी लगता है कि कथानक में मार्मिकता का समावेश करके दर्शकों की संवेदना अर्जित
करने के लिए ही फिल्म में विकलांग पात्र को अवतरित किया गया है, पर उसके अभिनय को देखकर
किसी का यह कथन याद आता है कि -‘अभिनय में जीवन से कहीं अधिक असलियत होती है।’ इस
कथन के आलोक में यह भी स्पष्ट होता है कि आम अभिनेता ख़ास चरित्रों को जीवंत बनाने में उतनी
आसानी से कामयाब नहीं हो पाते, जितनी आसानी से सशक्त अभिनेता अशक्त पात्रों की भूमिकाएं निभाने
में सफलता पाते हैं।